Description
फलित ज्योतिषशास्त्र के अनुसार व्यक्ति के जन्म के समय जिन-जिन रश्मि वाले ग्रहों की प्रधानता होती है एवं जो ग्रह बलहीन होते हैं उसी अनुसार उसे भौतिक, वैवाहिक, सांसारिक एवं आध्यात्मिक सुख प्राप्त होते हैं। वैवाहिक सुख उत्तम होने पर व्यक्ति का जीवन सुखप्रद एवं प्रगतिशील व्यतीत होता है एवं सुखप्रद एवं प्रगतिशील जीवन से सुखी एवं प्रगतिशील समाज व अन्ततोगत्वा प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण होता है। मेरी इस पुस्तक में प्राचीनकाल से वर्तमान काल तक में बदलती हुई वैवाहिक स्थितियों जैसे प्रेम-विवाह, अंतर्जातीय-विवाह, विवाह-विच्छेद, द्वि-विवाह, लिव-इन-रिलेशनशिप, दुःखी वैवाहिक जीवन आदि पर प्राचीन शास्त्र जैसे पाराशर पद्धति एवं बीसवीं शताब्दी की नक्षत्रों पर आधारित कृष्णामूर्ति पद्धति का तुलनात्मक अध्ययन, कुण्ड़लियों पर अनुसंधान, शास्त्रोक्त उपायों द्वारा सुखी वैवाहिक जीवन प्रदान करने में अनुसंधान कर सुखी एवं प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण करने में ज्योतिषीय योगदान देने का एक छोटा सा प्रयास है। ज्योतिष क्षेत्र में पाराशर पद्धति में सम्भवतया वैवाहिक जीवन पर तथा इससे संबंधित अन्यान्य विभिन्न विषयों पर विविध दृष्टियों से अनेकानेक पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं एवं अद्यावधि लिखी जा रही हैं। इस विषय पर पुनरीक्षण, समालोचन एवं तथ्यान्वेषण अनवरत रूप से होता रहा है। किन्तु वैवाहिक जीवन के इस विषय पर प्राचीन पाराशर पद्धति का आधुनिक अर्वाचीन विद्वान् कृष्णामूर्ति के द्वारा रचित छ़़ः भागों में दिये गये सिद्धान्तों का सांगोपांग अध्ययन किया जाकर विश्लेषणात्मक खोज की वर्तमान युग में आवश्यकता को देखते हुए कृष्णामूर्ति पद्धति से तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन द्वारा इस शोध पुस्तक को मूर्त रूप देने का मेरा सम्भवतः एकमात्र अनूठा प्रयास है। मेरे उपर्युक्त उद्देश्य की पूर्ति ग्रंथों के माध्यम से कहाँ तक हो सकी, इसका अनुमापन तत्संदर्भित अंशों के प्रतिपाद्य की समीक्षा कर स्पष्ट करने का प्रयास इस शोध पुस्तक में किया गया है। ज्योतिष में कलत्र भाव से सम्बद्ध पाराशर एवं कृष्णामूर्ति के इस अध्ययनपरक समीक्षात्मक, तुलनात्मक समग्र शोध पुस्तक को विषय बोध की दृष्टि से छः अध्यायों में वर्गीकृत किया गया है। जिस प्रकार दूध और पानी एक दूसरे के सहयोगी, पूरक, मित्रवत है व दूध के पानी के साथ मिलने से पानी के मूल्य में भी वृद्धि हो जाती है उसी प्रकार प्राचीन ऋषियों द्वारा रचित कलत्र भाव से संबंधित सिद्धान्तों से मित्रवत भाव रखते हुए सहयोगी के रूप में कृष्णामूर्ति पद्धति किस प्रकार सहायक है यह इस शोध पुस्तक का विषय है। इसके अतिरिक्त ग्रहों के मृत्युभाग के संबंध में मेरी महत्त्वपूर्ण खोज भी इस अनुसंधान का एक भाग है। यह शोध पुस्तक प्राचीन एवं नवीन सिद्धान्त के तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से वास्तविक रूप से मौलिक एवं शोधपरक रहेगी एवं कलत्र से संबंधित समस्याओं को कुण्डलियों में दोषी ग्रह एवं अन्यथा दोष होने पर शास्त्रोक्त मंत्रों के उपायों के संकलन के कारण सामान्यजन को इसका लाभ प्राप्त होने पर उपयोगी एवं सार्थक सिद्ध हो सकेगी ऐसा मेरा प्रयास है। पुस्तक लिखने में अनेक प्राचीन और नवीन आचार्यो और लेखकों की पुस्तकों की सहायता ली गयी है अतः सर्वप्रथम उन सभी महान लेखकों के प्रति कृतझता झापित करना मेरा परम कर्तव्य है। के.पी. शिरोमणि उपाधि प्राप्त कृष्णामूर्ति पद्धति विशेषज्ञ एवं सेवानिवृत्त न्यायाधीश मेरे पूज्यनीय पिताजी श्री श्यामलाल श्रीमाली का बाल्यकाल से ही समय समय पर कृष्णामूर्ति पद्धति में दिया गया पथ प्रदर्शन एवं शोध पुस्तक लिखने के दौरान निरन्तर प्रोत्साहन एवं सहयोग एवं कृष्णामूर्ति पद्धति के समुचित मार्गदर्शन के लिए मैं मेरे पिताजी कृष्णामूर्ति पद्धति विशेषज्ञ श्री श्यामलाल श्रीमाली जिन्होंने एम.काॅम., एल.एल.बी., सी.ए., आई.आई.बी., संगीत निपुण, आई.जी.डी. बम्बई जैसी विभिन्न डिग्रियांें के साथ 40 वर्षों तक कृष्णामूर्ति पद्धति का सांगोपांग अध्ययन किया, के प्रति उनकी अनुपम अनुकम्पा के लिए श्रद्धावनत् हूँ।
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