Description
भूमि का चयन हो जाने के बाद भूमि का पूजन करें। सर्वप्रथम जल के छीटें देवें। भूमि पर स्वस्तिक बनाएं। भगवान गणेश के नाम का स्मरण कर पान सुपारी रखें। पान के पत्ते पर कुमकुम चावल से पूजन करें। दीप प्रज्वलित करें। दशों दिशाओं को प्रणाम करें। रक्षा की प्रार्थना करते हुए पीलो सरसों का दसो दिशाओं में छिड़काव करें। गेती का पूजन करें। गेती पर हल्दी से स्वस्तिक बनाएं। भूमि की आरती करें। आरती दसो दिशाओं में समर्पित करें। नारियल फोड़कर प्रसाद भूमि पर अर्पित करें। गुड़ का भोग थोड़ा जमीन पर रखें। इसके बाद यह प्रसाद कारीगरों, कन्याओं व अन्य लोगों में बांट दें। गौ माता में 33 कोटि देवी-देवता का वास है। इसलिए भूमि पूजन वाले दिन गौ माता का विशेष पूजन करें। गौ मूत्र एक पवित्र औषधि है। पूजन के पश्चात गौ मूत्र का छिड़काव दसो-दिशाओं में करें। शुभ मुहूर्त में भूमि पूजन करें। शुभ माह, शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र, शुभ दिशा, शुभ लग्न का निर्णय करके ही निर्माण कार्य शुरु करें।
भूमि पूजन में पहली खुदाई
भूमि पूजन में पहली खुदाई का बहुत महत्तव होता है। वास्तुपुरुष का सिर ईशान कोण में व कुक्षी यानी कि जंघा आग्नेय कोण में मानी गई है। इसलिए पहली गेती आग्नेय कोण में चलाना चाहिए। संक्रांति अनुसार वास्तुपुरुष हर तीन महीने में अपनी दिशा बदलता है। लेकिन संक्रांति अनुसार श्रेष्ठ मुहूर्त नहीं मिलने पर आग्नेय कोण में ही प्रथम गेती चलाना शास्त्र सम्मत है।
भूमि पूजन – भूमि को समस्त जगत की जननी, जगत की पालक माना जाता है इसलिये इसलिये हिंदू धर्मग्रंथों में धरती को मां का दर्जा भी दिया गया है। भूमि यानि धरती से हमें क्या मिलता है यह सभी जानते हैं रहने को घर, खाने को अन्न, नदियां, झरने, गलियां, सड़कें सब धरती के सीने से तो गुजरते हैं। इसलिये तो शास्त्रों में भूमि पर किसी भी कार्य को चाहे वह घर बनाने का हो या फिर सार्वजनिक इमारतों या मार्गों का, निर्माण से पहले भूमि पूजन का विधान है। माना जाता है कि भूमि पूजन न करने से निर्माण कार्य में कई प्रकार की बाधाएं उत्पन्न होती हैं। आइये आपको बताते हैं कि कैसे करते हैं भूमि का पूजन, क्या है भूमि पूजन की विधि।
क्यों करते हैं भूमि पूजन – जब भी किसी नई भूमि पर किसी तरह का निर्माण कार्य शुरु किया जाता है तो उससे पहले भूमि की पूजा की जाती है, मान्यता है कि यदि भूमि पर किसी भी प्रकार का कोई दोष है, या उस भूमि के मालिक से जाने-अनजाने कोई गलती हुई है तो भूमि पूजन से धरती मां हर प्रकार के दोष पर गलतियों को माफ कर अपनी कृपा बरसाती हैं। कई बार जब कोई व्यक्ति भूमि खरीदता है तो हो सकता है उक्त जमीन के पूर्व मालिक के गलत कृत्यों से भूमि अपवित्र हुई हो इसलिये भूमि पूजन द्वारा इसे फिर से पवित्र किया जाता है। मान्यता है कि भूमि पूजन करवाने से निर्माण कार्य सुचारु ढंग से पूरा होता है। निर्माण के दौरान या पश्चात जीव की हानि नहीं होती व साथ ही अन्य परेशानियों से भी मुक्ति मिलती है।
भूमि पूजन की विधि – सबसे पहले पूजन के दिन प्रात:काल उठकर जिस भूमि का पूजन किया जाना है वहां सफाई कर उसे शुद्ध कर लेना चाहिये। पूजा के लिये किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण की सहायता लेनी चाहिये। पूजा के समय ब्राह्मण को उत्तर मुखी होकर पालथी मारकर बैठना चाहिये। जातक को पूर्व की ओर मुख कर बैठना चाहिये। यदि जातक विवाहित है तो अपने बांयी तरफ अपनी अर्धांगनी को बैठायें। मंत्रोच्चारण से शरीर, स्थान एवं आसन की शुद्धि की जाती है। तत्पश्चात भगवान श्री गणेश जी की आराधना करनी चाहिये। भूमि पूजन में चांदी के नाग व कलश की पूजा की जाती है। वास्तु विज्ञान और शास्त्रों के अनुसार भूमि के नीचे पाताल लोक है जिसके स्वामी भगवान विष्णु के सेवक शेषनाग भगवान हैं। मान्यता है कि शेषनाग ने अपने फन पर पृथ्वी को उठा रखा है। चांदी के सांप की पूजा का उद्देश्य शेषनाग की कृपा पाना है। माना जाता है कि जिस तरह भगवान शेषनाग पृथ्वी को संभाले हुए हैं वैसे ही यह बनने वाले भवन की देखभाल भी करेंगें। कलश रखने के पिछे भी यही मान्यता है कि शेषनाग चूंकि क्षीर सागर में रहते हैं इसलिये कलश में दूध, दही, घी डालकर मंत्रों द्वारा शेषनाग का आह्वान किया जाता है ताकि शेषनाग भगवान का प्रत्यक्ष आशीर्वाद मिले। कलश में सिक्का और सुपारी डालकर यह माना जाता है कि लक्ष्मी और गणेश की कृपा प्राप्त होगी। कलश को ब्रह्मांड का प्रतीक और भगवान विष्णु का स्वरुप मानकर उनसे प्रार्थना की जाती है कि देवी लक्ष्मी सहित वे इस भूमि में विराजमान रहें और शेषनाग भूमि पर बने भवन को हमेशा सहारा देते रहें। भूमि पूजन विधि पूर्वक करवाया जाना बहुत जरुरी है अन्यथा निर्माण में विलंब, राजनीतिक, सामाजिक एवं दैविय बाधाएं उत्पन्न होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
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