10 दिनों का शक्ति पर्व शारदीय नवरात्र सभी मित्रो के लिए मंगलमय हो

 –  01 अक्टूबर से 11 अक्टूबर 2016

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।।
01. अक्टूबर – घटस्थाना, प्रथम नवरात्र – शैलपुत्री का पूजन
02. अक्टूबर – प्रथम नवरात्र वृद्धि – शैलपुत्री का पूजन
03. अक्टूबर – द्वितीय नवरात्र – ब्रह्मचारिणी का पूजन
04. अक्टूबर – तृतीय नवरात्र – चन्द्रघण्टा का पूजन
05. अक्टूबर – चतुर्थ नवरात्र – कूष्माण्डा का पूजन
06. अक्टूबर – पंचम नवरात्र – स्कन्दमाता का पूजन
07. अक्टूबर – षष्ठ नवरात्र, छठ पूजन व मेला – कात्यायनी का पूजन
08. अक्टूबर – सप्तम नवरात्र, महासप्तमी, जागरण – कालरात्रि का पूजन
09. अक्टूबर – अष्टम नवरात्र, महाष्टमी, पारणा – महागौरी का पूजन
10. अक्टूबर – नवम नवरात्र, महावनी, नवरात्र समाप्त – सिद्धिदात्री का पूजन
11. अक्टूबर – विजयादषमी, नवरात्र उत्थापन
नवरात्र के दौरान शुभ योग, नवरात्र पर्व में गुरु अस्त दोष की छाया रहेगी, अतः बडे मांगलिक आयोजन, खरीददारी, क्रय-विक्रय, गृहारम्भ, गृहप्रवेष आदि शुभ कार्य 07 अक्टूबर को दोपहर 02:10 के बाद ही करे।:-
1. सर्वार्थसिद्धियोग – 06 अक्टूबर को प्रातः 06:26 से 11:41 तक
2. सर्वार्थसिद्धियोग – 09 अक्टूबर को सायंकाल 06:34 से सूर्योदय प्रातः 06:26 तक
3. सर्वार्थसिद्धियोग – 10 अक्टूबर को सायंकाल 07:40 से सूर्योदय प्रातः 06:28 तक
गुरु अस्त दोष:-
दिनांक 11 सितम्बर 2016 को सायं 05:07 से अस्त चला आ रहा गुरु नवरात्रपर्व के समय दिनांक 07 अक्टूबर को दोपहर 02:10 पर गुरु का उदय होगा, अतः इस मध्य केवल देवी का पूजन सम्बन्धी ही कार्य किये जा सकते है। अन्य सभी मांगलिक कार्य दिनांक 07 के बाद ही किये जा सकते है।
द्विपुष्कर योग:-
दिनांक 02 अक्टूबर को प्रातः 07:47 से अन्तरात्रि 07:45 तक द्विपुष्कर योग है। इसमें आप खरीददारी, मकान खरीदना, वाहन खरीदना आदि सभी सांसारिक कर सकते है क्योंकि इसमें किये गये कार्य का फल द्विगुणित प्राप्त होता है।
कन्याओं की जाति से लाभ :-
सभी कार्यों में सिद्धि की कामना से ब्राह्मणी कन्या, जय की भावना से क्षत्रिय (राजवंश से उत्पन्न) कन्या, धनलाभ के लिए वैश्यवंश की कन्या, पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु शूद्रवंश की कन्या, दारुणकर्म (मारण, उच्चाटन, विद्वेषण) हेतु अन्त्य जाति की (चाण्डाल, यवन आदि से उत्पन्न) कन्या का पूजन करना चहिए।
कन्याओं की संख्या:-
1. एक कन्या को भोजन करवाने से ऐष्वर्य की प्राप्ति होती है।
2. दो कन्याओं को भोजन करवाने से भुक्ति व मुक्ति की प्राप्ति होती है।
3. तीन कन्याओं को भोजन करवाने से धर्म, अर्थ व काम की प्राप्ति होती है।
4. चार कन्याओं को भोजन करवाने से राज्यसुख की प्राप्ति व सभी कामनाओं की प्राप्ति होेती है।
5. पाँच कन्याओं को भोजन करवाने से विद्यासुख की प्राप्ति होती है।
6. छः कन्याओं को भोजन करवाने से षट्कर्म सिद्धि प्राप्त होती है।
7. सत कन्याओं को भोजन करवाने से राज्यसुख की प्राप्ति होती है।
8. आठ कन्याओं को भोजन करवाने से गुण व सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
9. नौ कन्याओं को भोजन करवाने से राजा के तुल्य सुख की प्राप्ति होती है।
X