यह चिन्ह् विभिन्न रूपों में विभिन्न सम्प्रदायों में प्रयोग किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु + अस्तित्व से मिलकर बना है जिसका अर्थ है_ कल्याणकारी एवं श्रेष्ठ सत्ता का अस्तित्व। जहाँ पर प्रेम-उल्लास का वातावरण है, वहीं पर स्वस्तिक की भावना है। स्वस्तिक चिन्ह् मानव के विकाश और सुरक्षा के लिए मिला एक कवच है। हमारे ऋषि- मुनियों ने निर्विघ्न कार्य संपन्न कराने हेतु इस स्वस्तिक चिन्ह् का निर्माण किया।

‘अमर कोष’ ग्रंथ में लिखा है स्वस्तिकः सर्वतो ऋद्धिः अर्थात सभी प्रकार से सभी दिशाओं के सौरभ से मानव मात्र का कल्याण हो। स्वस्तिक शांति, समृद्धि एवं सौभाग्य का प्रतीक है। सौभाग्यवती स्त्रियां चातुर्मास्य में स्वस्तिक व्रत करती हैं। यह व्रत सौभाग्य के लिए किया जाता है। गुजरती घरों में विशेष रूप से प्रत्येक घर के दरवाजे पर स्वस्तिक चिन्ह् लगाने का रिवाज है ताकि उनके घर आने वाला प्रत्येक व्यक्ति शुभ संदेश लेकर आए।

स्वस्तिक की खड़ी रेखा स्वयंभू ज्योतिर्लिङ्ग की ओर इशारा करती है जो विश्व की उत्पत्ति का मूल कारण है। आड़ी रेखा विश्व का विस्तार बताती है। शिव एवं शक्ति के योग से ही सृष्टि का विस्तार हुआ है।

स्वस्तिक चिन्ह् गणपति के साकार विग्रह का प्रतीक रूप है। बौद्ध धर्म के तांत्रिक संप्रदाय में विनायक के प्रतीक के रूप में स्वस्तिक पूजन किया जाता है। नेपाल में हेरब नाम से स्वस्तिक की पूजा की जाती है। यूनानी गणेश जी को ओरेनस नाम से पूजते हैं। बर्मा में महा पियेन्ने, चीन में कुआद-शी-तियेनु तथा जापान में कंगीयन नाम से स्वस्तिक चिन्ह् को जाना जाता है।
हिंदुओं में दीपावली शुभ अवसर पर स्वस्तिक चिन्ह् की पूजा की जाती है। जब इनकी गणेश जी के रूप में कल्पना की जाती है तो स्वस्तिक चिन्ह् के दोनों ओर ऋद्धि-सिद्धिदायक दो लकीरें अगल-बगल दिखाई जाती है। यदि ये रेखाएं न लगाई जाएँ तो स्वस्तिक चिन्ह् बिच में रख कर शुभ-लाभ लिखकर पूजन किया जाता है। इस प्रकार के पूजन से घर में लक्ष्मी की कभी कमी नहीं रहती।

जैन धर्मावलम्बी स्वस्तिक चिन्ह् का प्रयोग किसी मांगलिक कार्य में साक्ष्य अर्थात गवाह के रूप में करते हैं। ईसाई स्वस्तिक को क्रास के रूप में मानते हैं। यह क्रास वास्तव में गणेश की प्रतिमा का सूक्ष्म रूप है। ईसाईयों का प्रसिद्ध क्राइस्ट शब्द कर+ आस्य+ इष्ट से मिलकर बनता है जिसका अर्थ है_ हांथी के सामान मुख वाले गणेश जी को अपना इष्ट मानने वाला व्यक्ति। स्वस्तिक की चरों भुजाओं से चारो दिशाओं का शुभ संकेत मिलता है और शुभ चिन्तन द्वारा मनुष्य दुःख से छुटकारा पता है। इसी को ध्यान में रख कर संभवतः रेडक्रास सोसायटी ने रेडक्रास को स्वास्थ्य लाभ का प्रतीक माना है

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