श्राद्ध पक्ष में मृत्यु तिथि को पार्वण श्राद्ध करना चाहिए- "पर्वणि भव: पार्वण:।" महालय में एकोदिष्ट श्राद्ध नहीं होता हैं। जो पार्वणश्राद्ध न कर सके, वह कम से कम पञ्चबलि निकालकर ब्राह्मण-भोजन ही कराये, जिसका विधान हम यहाँ बता रहे है। बहुत से व्यक्ति पार्वणश्राद्ध नहीं कराकर केवल ब्राह्मण-भोजन ही करा देते हैं, हम सभी को पञ्चबलि अवश्य ही करनी चाहिए, उसका नियम इस प्रकार है :-
श्राद्ध के निमित्त भोजन तैयार होने पर एक थाली में पाँच जगह थोड़े-थोड़े सभी प्रकार के भोज्य-पदार्थ परोसकर हाथ में जल, अक्षत, पुष्प, चन्दन लेकर निम्रलिखित सङ्कल्प करे :- अद्य अमुक गोत्र: अमुक शर्मा (वर्मा/गुप्तो वा) अहम् अमुकगोत्रस्य मम पितु: (मातु: भ्रातु: पितामहस्य वा) वार्षिक श्राद्धे (महालय श्राद्धे) कृतस्य पाकस्य शुद्ध्यर्थं पञ्चसूनाजनितदोषपरिहारार्थं च पञ्चबलिदानं करिष्ये।
 पञ्चबलि-विधि -
 १. गाय हेतु बलि (पत्ते पर) :- मण्डल के बाहर पश्चिम की ओर निम्रलिखित मन्त्र (यदि मन्त्र याद न रहे तो "गोभ्यो नम:" आदि मन्त्र से बलि प्रदान कर सकते हैं।) पढ़ते हुए सव्य (दक्षिणाभिमुख) होकर गोबलि पत्ते पर देवे - "सौरभेय्य: सर्वहिता पवित्रा: पुण्यराशय:। प्रतिगृहणन्तु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातर: ॥ इदं गोभ्यो न मम।
 2. श्वान हेतु बलि (पत्ते पर) :- जनेऊ को कण्ठी करके निम्रलिखित मन्त्र से कुत्ते को बलि देवे - दौ श्वानौ श्यामशबलौ वैवस्वतकुलोद्भवौ। ताभ्यामन्नं प्रयच्छामि स्यातामेतावहिंसकौ ॥ इदं श्वाभ्यां न मम।
 ३. काक हेतु बलि (पृथ्वी पर) :- अपसव्य (उत्तराभिमुख) होकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर कौओं को भूमि पर अन्न देवे - "ऐन्द्रवारुणवायव्या याम्या वै नैर्ऋतास्तथा। वायसा प्रतिगृहणन्तु भूमौ पिण्डं मयोज्झितम् ॥ इदम् अन्नं वायसेभ्यो न मम।
 ४. देवताओं हेतु बलि (पत्ते पर) :- सव्य होकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर देवता आदि के लिए अन्न देवे - "देवा मनुष्या: पशवो वयांसि, सिद्धा: सयक्षोरगदैत्यसङ्घा:। प्रेता: पिशाचास्तरव: समस्ता:, ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम् ॥ इदं देवादिभ्यो न मम।
 ५. पिपीलिका हेतु बलि (पत्ते पर) :- इसी प्रकार निम्रलिखित मन्त्र से चींटी आदि को बलि देवे - पिपीलिका: कीटपतङ्गकाद्या, बुभुक्षिता: कर्मनिबन्धबद्धा:। तेषां हि तृप्त्यर्थमिदं मयान्नं, तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु ॥ इदं पिपीलिकादिभ्यो न मम।
 पञ्चबलि देने के बाद एक थाली में सभी पकवान परोसकर अपसव्य और दक्षिणाभिमुख होकर निम्र सङ्कल्प करे - अद्य अमुक गोत्र: अमुक शर्माऽहममुकगोत्रस्य मम पितु: (पितामहस्य मातु: वा) वार्षिकश्राद्धे (महालयश्राद्धे वा) अक्षयतृप्त्यर्थमिदमन्नं तस्मै (तस्यै वा) स्वधा।
 उपर्युक्त सङ्कल्प करने के बाद "ॐ इदमन्नम्", " ॐ इमा आप:", " ॐ इदमाज्यम्", " ॐ इदं हवि:" इस प्रकार बोलते हुए अन्न, जल, घी तथा पुन: अन्न को दाहिने हाथ के अङ्गुष्ठ से स्पर्श करे। तत्पश्चात् दाहिने हाथ में जल, अक्षत आदि लेकर निम्र सङ्कल्प करे -
 ब्राह्मण भोजन का सङ्कल्प :- अद्य अमुकगोत्र: अमुकोऽहं मम पितु: (मातु: वा) वार्षिकश्राद्धे यथासंख्यकान् ब्राह्मणान् भोजयिष्ये। पञ्चबलि निकालकर कौओं के निमित्त निकाला गया अन्न कोएं को, कुत्ते का अन्न कुत्ते को, देवताओं का अन्न देवताओं को, चींटियों का अन्न चींटियोंं को तथा गाय का अन्न गाय को देने के बाद निम्रलिखित मन्त्र से ब्राह्मणों के पैर धोकर भोजन करायें। यत् फलं कपिलादाने कार्तिक्यां ज्येष्ठपुष्करे। तत्फलं पाण्डवश्रेष्ठ विप्राणां पादसेचने ॥
 इसके बाद उन्हें अन्न, वस्त्र और द्रव्य-दक्षिणा देकर तिलक करके नमस्कार करे, तत्पश्चात् नीचे लिखे वाक्य यजमान व ब्राह्मण दोनों बोले -
 यजमान :- शेषान्नेन किं कत्र्तव्यम्। (श्राद्ध में बचे अन्न का क्या करूं ?)
 ब्राह्मण :- इष्टै: सह भोक्तव्यम्। (अपने इष्ट-मित्रों के साथ भोजन करें।)
 इसके बाद अपने परिवार वालों के साथ स्वयं भी भोजन करे तथा निम्र मन्त्र द्वारा भगवान को नमस्कार करें - प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत्।
स्मरणादेव तद्विष्णो: सम्पूर्णं स्यादिति श्रुति:।।
X