🌺श्रीमद्भागवत में अजामिल की कथा आती है। अजामिल एक धर्मपरायण, गुणी, समझदार और विष्णुभक्त था। माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र अजामिल ने किशोरावस्था तक वेद-शास्त्रों का विधिवत अध्ययन कर लिया था।

🌺युवावस्था में प्रवेश करते ही एक दिन अजामिल के साथ ऐसी घटना घटी कि उसका पूरा जीवन परिवर्तित हो गया। पिता के आदेश पर आजामिल एक दिन पूजा के लिए वन से उत्तम फल और फूल लेकर लौट रहा था। रास्ते में उसे एक बाग में एक सुन्दर युवती दिखी। जो वैश्या थी।

🌺अजामिल ने खुद को उसे देखने से बहुत रोका, लेकिन वह उस युवती का रुप निहारने लगा। उस स्त्री की नजर भी अजामिल पर पड़ी और वह भी उस पर मोहित हो गई। स्त्री ने अजामिल को पास बुलाया और अपने मन की बात कह दी। अजामिल तो उस पर पहले ही मोहित था और उस सुन्दरी से मिले प्रेम निमन्त्रण से तो उसका दिमाग और मन पर नियन्त्रण ही नहीं रहा। उसके रुपजाल में फंसा अजामिल अपने संस्कार तक को भूल गया।

🌺उसने पूजा के लिए रखे फल-फूल वहीं फेंक दिए और युवती के साथ प्रेम में मगन हो गया। फिर उस स्त्री को लेकर वह घर चला आया। पिता पूजा में विघ्न पड़ने से नाराज तो थे ही, अजामिल को एक आचरणहीन स्त्री के साथ देखकर भड़क उठे और खरी-खोटी सुनाने लगे ।

🌺अजामिल ने कहा कि उसने गंधर्व विवाह (प्रेम विवाह) कर लिया है । पिता ने उसे धर्म-कर्म का लाख हवाला दिया, परन्तु नारी रुप पर आसक्त अजामिल को कहाँ समझ आना था । क्रोधित पिता इस धृष्टता का दण्ड देने के लिए उठे, लेकिन अजामिल ने उन्हें जमीन पर पटक दिया और यही नहीं उसने अपने पिता को धक्के मारकर घर से निकाल दिया ।

🌺लोक लाज, कर्म और संस्कार तो भूल ही चुका था, स्त्री की जरुरतें पूरी करने के लिए अजामिल चोरी, डकैती, लूटपाट करने लगा । मदिरापान और जुए की लत भी उसे पड़ गई थी । उसे बुरे कर्मों में ही सन्तुष्टि मिलने लगी ।

🌺उस गणिका से अजामिल को नौ सन्तानें हुईं । दसवीं बार उसकी पत्नी गर्भवती हुई। संयोगवश एक दिन कुछ सन्तों का समूह अजामिल के गाँव की ओर से गुजर रहा था। रात्रि अधिक होने पर उन्होंने उसी गाँव में ठहरना ठीक समझा, जिसमें अजामिल रहता था । सन्तों ने गाँव वालों से भोजन और ठहरने का प्रबन्ध करने को कहा तो गाँव वालों ने मजाक बनाते हुए उन सन्तों को अपमानित करने के लिए अजामिल के ही घर भेज दिया।

🌺सन्त अजामिल के घर पहुँच गए। उस समय अजामिल घर पर नहीं था, गणिका ही घर पर थी । गाँव वालों ने सोचा था कि ये साधु लोग अजामिल के द्वार पर अपमानित होंगे और फिर इधर कभी नहीं आयेंगे । सन्तों की मण्डली ने अजामिल के द्वार पर जाकर ‘राम नाम’ का उच्चारण किया और खाने की सामग्री मांगी ।

🌺उसकी पत्नी (गणिका) हाथ में खाने की सामाग्री और कुछ दक्षिणा लेकर बाहर आई। वह साधुओं से बोली – ‘बाबा ! आप यह सामग्री लेकर यहाँ से शीघ्र निकल जाओ । क्योंकि मेरा पति अजामिल बड़ा दुष्ट है, वह आता ही होगा । उसने यदि आप लोगों को यहाँ देख लिया तो आप लोगों के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी ।’

🌺लेकिन साधुओं ने भोजन की सामग्री ली और उसके घर के पास ही एक वृक्ष के नीचे भोजन बनाने लगे । वे समझ गए थे कि समय के फेर से अजामिल कुसंस्कारी हो गया है । जाने से पहले सन्त पुन: अजामिल के घर पहुँचे । उन्होंने आवाज़ लगाई तो गणिका बाहर आयी । सन्तों ने कहा – ‘बेटी ! तुम अपनी दसवीं सन्तान का नाम नारायण रख देना । तुम्हारा कल्याण होगा ।’

🌺अजामिल को दसवीं सन्तान के रुप में एक पुत्र हुआ । सन्तों के कहने पर और गणिका के समझाने से अजामिल ने उसका नाम ‘नारायण’ रख दिया । नारायण सभी का प्रिय था । अजामिल अपनी स्त्री और नारायण पुत्र को बहुत प्यार करता था । धर्म-कर्म तो कब का त्याग हो चुका था । जीवन भर वह अपनी पत्नी और पुत्र के मोह जाल में बुरी तरह जकड़ा रहा ।

🌺कुछ समय बाद उसका अन्त समय भी नजदीक आ गया । भयानक यमदूत उसे लेने आए । भय से व्याकुल अजामिल ने नारायण ! नारायण ! कहकर अपने पुत्र को पुकारा, जो घर के सामने खेल रहा था । अन्त समय में अजामिल के मुख से ‘नारायण’ नाम सुनते ही श्रीहरि विष्णु के दिव्य पार्षद तत्काल वहाँ प्रकट हो गए । यमदूतों ने जिस रस्सी से अजामिल को बांधा था, प्रभु के पार्षदों ने उसे तोड़ डाला ।

🌺यमदूतों के पूछने पर दिव्य पार्षदों ने कहा कि ‘नारायण नाम के प्रभाव से यह श्रीहरि का शरणागत है ।’ यमदूतों ने कहा कि ‘यदि हमने अपना कार्य पूरा न किया तो यमराज का कोप हमें झेलना पड़ेगा । इस व्यक्ति ने जीवन भर बुरे कर्म किए हैं । इसे घोर नरक में स्थान मिला है ।’

🌺भगवान के पार्षदों ने कहा – ‘किन्तु जब तुम इसे पकड़ने आए तो यह ‘नारायण’ नाम का स्मरण कर रहा था । प्रभु के आदेश पर हम प्रभु नाम जपने वालों की सहायता करते हैं ।’ यमदूतों ने बताया कि ‘यह प्रभु नाम का स्मरण नहीं कर रहा था, बल्कि हमारे भय से अपने पुत्र को पुकार रहा था ।’

🌺अजामिल के सामने ही दोनों पक्षों में बहस चलती रही । भगवान के पार्षदों ने कहा – ‘अन्त समय में इसने नारायण नाम लिया है, इसलिए तुम इसे नरक नहीं ले जा सकते ।’ यमदूत खाली हाथ वापिस लौट गए और उन्होंने यमराज को सारी बात बताई।

🌺इधर अजामिल को भी भगवन नाम की महिमा समझ मे आ गई। अतः उसे जीवन भर की अपनी करनी पर पश्चताप होने लगा।

🌺 यमराज ने अपने दूतों को कहा कि – ‘श्रीहरि के पार्षदों के दर्शन के कारण इसे एक वर्ष का जीवन स्वतः ही मिल गया है । अब इस एक साल के कर्मों के आधार पर ही इसकी गति तय होगी ।’

🌺अजामिल को जो एक साल मिल गया था, उसने उसका सदुपयोग किया । वह धर्मपरायण हो गया । वह हर समय प्रभु नाम का जाप करता और धर्म-कर्म में लीन रहता । जीवन के शेष दिन उसने सत्संग में बिताए । एक साल पूरे होने पर यमदूत नहीं आए, बल्कि साक्षात् धर्मराज के पार्षद अजामिल को लेने के लिए आए, लेकिन इस बार उन्होंने उसे अपमानित करते हुए रस्सी में नहीं बांधा, बल्कि सम्मान के साथ विदा करके श्रीहरी के धाम ले गए ।

🌺श्रीमद् भागवत की यह कथा बताती है कि ईश्वर का मार्ग ही मोक्ष का मार्ग है । अन्ततः ईश्वर के ही पास जाना है । हमें तय करना होगा कि यमदूत हमें रस्सियों में बांधकर घसीटते हुए घोर नरक में ले जायें या सम्मान के साथ हमें प्रभु शरण प्राप्त हो ।

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