प्रातः नींद से जागने के पश्च्यात अपनी दोनों हथेलियों को देखते हुए निम्न मन्त्र का पाठ कर हथेलियों को अपने चेहरे पर तिन बार फेरने से दिन अच्छा व्यतीत होता है और शांति प्राप्त होती है।
कराग्रे बसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते कर दर्शनम्।।
स्वस्ति वाचन
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्ताक्षर्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।
श्री गणेश मन्त्र
वन्क्रतुण्ड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभ:। निर्विघ्न कुरुमे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।
सर्व विघ्न हरं देव सर्व विघ्न विवर्जित:।
सर्व सिद्धि प्रदातारं, वन्दहं गण नायकम्।।
श्री गणेश स्तुति: गजाननं भूत गणाधिसेवितं कतिपय जम्बूफल चारू भक्षणम्। उमा सुतं शोक विनाश कारकं नवामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।। शिव स्तुति: कर्पूरगौरं करुणावतांर, संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सव्दावसंतं ह्मदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि।।
गायत्री मन्त्र
गायत्री मन्त्र ऊँ भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
भावार्थ: उस प्राण स्वरूप, दु:ख नाशक,सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, प्रकाश स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
सूर्य नमस्कार
सूर्य देव के तेरह नामों का स्मरण कर जल चढ़ाये। पात्र में जल ले उसमें लाल कुमकुम, लाल फूल डालें।
श्री ऊँ मित्राय नम:, ऊँ हिरण्यगर्माय नम:, ऊँ रवये नम:, ऊँ भरीचाय नम:, ऊँ सूर्याय नम:, ऊँ आदित्याय नम:, ऊँ भानवे नम:, ऊँ सावित्रे नम:, ऊँ खगाय नम:, ऊँ अकार्य नम:, ऊँ पूपणे नम:, ऊँ भापकराय नम: सावित्रे सूर्यनारायणाम नम:
श्री विष्णु स्तुति
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशहम्। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभांगम्।। लक्ष्मीकातं कमलनयनं योगिभिध्र्यानगम्यं। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
भावार्थ
जिसकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किये हैं। जिसकी नाभि में कमल है, पूरे विश्व के ईश्वर है, सम्पूर्ण जगत का आधार हैं आकाश सा घनत्व है नील मेघ सा रंग, सम्पूर्ण अंग सुन्दर है जो योगियों द्धारा ध्यान कर प्राप्त किया जाता है, सम्पूर्ण लोको का स्वामी है। जन्म मरण, रुप, भय का नाश करने वाला है ऐसे लक्ष्मीपति , कमलनेत्र विष्णु भगवान को मेरा प्रणाम।
राम स्तुति
नीलाम्बुज श्यामलकोमलांगम् सीतासमारोपित-वामभागम्। पाणौ महासायक-चारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।
श्री कृष्ण स्तुति
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव। हरे मुरारे मधु कैटभारे, निराश्रयं माँ जगदीश रक्ष।। त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव।।
श्री दुर्गा स्तुति
जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
सरस्वती स्तुति
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्ड-मण्डितकरा या श्वेतपद्मासना। या ब्राहृाच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै, सदा वन्दिता । सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।
हनुमान स्तुति
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये।।
गुरु वंदना
गुरुब्राहृा गुरर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरु: साक्षात् परं ब्राहृ तस्मै श्रीगुरुवे नम:।।
नव ग्रह शान्ति मंत्र
सूर्य: ऊँ आदित्याय विद्महे प्रभाकराय धीमहि तन्नो सूर्य प्रचोदयात्।।
चन्द्र: ऊँ भूभर्व स्व: अमृताड्राय: विदमहे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमो प्रचोदयात्।।
मंगल: ऊँ अगांरकाय विदमहे शाक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो भौम प्रचोदयात्।। ऊँ भूमि पुत्रो महातेजो जगता भयकृत्सदा। वृष्टि कद् वृष्टि हर्ता च पीड़ा हरतु ते कुंज।।
बुुध: ऊँ सौम्य रूपाय विदमहे वाणेशाय धीमहि तन्नो सौम्य प्रचोदयात्।।
वृृहस्पाति: ऊँ अगि:रसाय विदमहे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो जीव प्रचोदयात्।।
शुक्र: ऊँ शुक्राय विदमेह शुक्लाम्बरधर: विदमेह तन्नो शुक्र प्रचोदयात्।।
शनि: ऊँ भूभर्व: स्व: शन्नो देवि रभिष्टये विदमेह निलांजनाय धीमहि तन्नो शनि प्रचोदयात्।।
राहू: ऊँ शिरोरूपाय विदमहे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहू प्रचोदयात्।।
केतु: ऊँ पदम पुत्राय विदमहे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतु प्रचोदयात्।।
वास्तु मन्त्र
वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान् त्स्वावेशो अनमीवो: भवान्।
यत् त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे।।
ऋग्वेद के इस मंत्र का सरल शब्दों में अर्थ है – हे वास्तु देवता, हम आपकी सच्चे हृदय से उपासना करते हैं। हमारी प्रार्थना को सुन आप हमें रोग-पीड़ा और दरिद्रता से मुक्त करें। हमारी धन-वैभव की इच्छा भी पूरी करें। वास्तु क्षेत्र या घर में रहने वाले सभी परिजनों, वाहनादि का शुभ व मंगल करें।