आलेख – डॉ. रवि शर्मा 

संपादक – ज्योतिष सम्राट पंचांग, जयपुर।

चार महालाभकारी सुयोगो से युक्त महाफलदायी गंगा दशहरा (दशमी) – 04 जून 2017, इसी दिन पृथ्वी पर गंगा माँ का अवतरण हुआ था। 

1. अमृतसिद्धि योग – प्रातः 05:37 से दोपहर 03:24 तक

2. रवि योग – प्रातः 05:37 से दोपहर 03:24 तक

3. सर्वार्थ सिद्धि योग – प्रातः 05:37 से दोपहर 03:24 तक

4. अमृत योग – प्रातः 05:37 से दोपहर 08:03 तक

उपरोक्त चारो योग दोपहर को समाप्त हो रहे है, परन्तु शास्त्रों के अनुसार जो योग सूर्योदय के समय होता है, वह पुरे दिन अपना शुभफल देता है। अतः पूरा दिन खरीददारी हेतु सर्वश्रेष्ठ है।

इन योगो में हुई थी गंगा की उत्पत्ति – ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर करण, आनंद योग (बुध+हस्त), कन्या राशि में चद्रमा एवं वृष राशि में सूर्य। इसमें से अधिकतर योग (गुरु और चंद्र कन्याराशि में, सूर्य एवं बुध वृष राशि, गर करण, हस्त नक्षत्र, ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि) इस वर्ष भी बन रहे है।

इस वर्ष गंगा दशहरा गजकेसरी योग, बुध-आदित्य योग, अमृतसिद्धि योग, रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग एवं अमृत योग से युक्त है। गंगा दशहरा को गुरु और चंद्र कन्याराशि में, सूर्य एवं बुध वृष राशि में गोचर कर रहे है। इतने सुयोगो से युक्त गंगा दशमी आम आदमी को मंहगाई से राहत देकर सुवृष्टि के योग बनाएगी। खरीददारी के लिए सर्वश्रेष्ठ समय रहेगा। इस दिन दान-पुण्य करने से कष्टों से मुक्ति और शुभ फलो की प्राप्ति होगी। इस दिन को संवत्सर का मुख माना गया है। इस दिन सोना, चाँदी, विद्युत उपकरण, सजावटी सामान, वाहन खरीदना लाभदायी होगा।

ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन ही भगीरथ गंगा को धरती पर लाये थे, इसी दिन गंगा धरती पर अवतरण हुई थी, इस वर्ष 04 जून 2017 को यह पर्व मनाया जायेगा, जिसे आज हम गंगा दशहरा के नाम से भी मनाते हैं और इसे हम गंगावतरण के नाम से भी जानते हैं। इसका मतलब है गंगा का अवतरण। इस अवसर पर लोग गंगा में नहाते हैं, और पूजा करके गरीबों को दान पुण्य करते हैं। मान्यता है कि भगीरथ के पूर्वजों को श्राप मिला था जिसकी वजह से राजा भगीरथ ने गंगा को घरती पर लाने के लिए घोर तपस्‍या की थी। पृथ्वी पर आने से पहले, देवी गंगा भगवान ब्रह्मा के कमंडल में रहती थी। गंगा दशहरा के अवसर पर लोग इलाहाबाद / प्रयाग, गढ़मुक्तेश्वर, हरिद्वार, ऋषिकेश और वाराणसी में स्नान के लिए जाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से इंसान के सारे पाप धुल जाते हैं। वाराणसी में गंगा दशहरा बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। इस पर्व पर लाखों लोग गंगा जी में स्नान करके, दसवमेध घाट पर उनकी आरती करतें हैं। कुछ लोग गंगा दशहरा को गंगा जयंती समझने लगते हैं, जिस दिन गंगा जी फिर से पुनर्जीवित हुई थी। शास्त्रों के अनुसार गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है. इस दिन स्वर्ग से गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए इसे महापुण्यकारी पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन मोक्षदायिनी गंगा की पूजा की जाती है.

दान-पुण्य का महत्व :- गंगा दशहरा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है. इस दिन दान में सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दुगुना फल प्राप्त होता है. गंगा दशहरा के दिन किसी भी नदी में स्नान करके दान और तर्पण करने से मनुष्य जाने-अनजाने में किए गए कम से कम दस पापों से मुक्त होता है. इन दस पापों के हरण होने से ही इस तिथि का नाम गंगा दशहरा पड़ा है.

गंगा दशहरा व्रत और पूजन विधि :- गंगा दशहरा का व्रत भगवान विष्णु को खुश करने के लिए किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन लोग व्रत करके पानी भी (जल का त्याग करके) छोड़कर इस व्रत को करते हैं. ग्यारस (एकादशी) की कथा सुनते हैं और अगले दिन लोग दान-पुण्य करते हैं. इस दिन जल का घट दान करके फिर जल पीकर अपना व्रत पूर्ण करते हैं. इस दिन दान में केला, नारियल, अनार, सुपारी, खरबूजा, आम, जल भरी सुराई, हाथ का पंखा आदि चीजें भक्त दान करते हैं.

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