पूजा-स्थल का महत्त्व प्रत्येक धर्म और सम्प्रदाय में निरंतर बना हुआ है। चाहे कोई भी धर्म हो, मूर्ति पूजा हो, ध्यान हो या योग-अभ्यास, किसी-न-किसी रूप में परमपिता को सभी याद करते हैं। वैदिक युग की परम्परा के अनुसार मनुष्य योनि में आ कर एक छोटा-सा घर बनाकर उसके एक छोटे से कोने में भगवान की मूर्त या अमूर्त स्थापना कर जो व्यक्ति अग्निदीप जलाता है, सुगन्धित धूप, अगरबत्ती और समिधा से हवन करता है, वह राक्षस कुल का होकर भी दैवी आशीर्वाद प्राप्त करता है। मनुष्य योनि में आकर भगवान का स्मरण करना न केवल एक आध्यात्मिक और बौद्धिक दबाव है, बल्कि आत्मतुष्टि एवं मानसिक तनाव दूर करने का अचूक साधन भी है।

आज कलयुग में दैवी साधना का महत्त्व घटता जा रहा है। निरंतर मशीन और चमत्कारी यंत्रों के सहारे जीवन-यापन हो रहा है। फिर भी पूजा-स्थल का एक महत्त्व संपन्न विज्ञान की दुनिया में बना हुआ है। इस पवित्र कार्य के लिए भवन का ईशान् कोण ( north east ) सबसे उत्तम है। पूजा करते समय व्यक्ति मुख पूर्व की ओर हो, इस प्रकार से मूर्तियों को पूर्व से पश्चिम की ओर या दक्षिण से उत्तर की ओर स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के आमने – सामने पूजा के दौरान कभी नहीं बैठना चाहिए, बल्कि सदैव दाएँ कोण में आसन होना चाहिए।

ब्रह्मा, विष्णु, शिव, कार्तिकेय का मुख पूर्व की ओर या पश्चिम की ओर होना चाहिए। गणेश, दुर्गा, कुबेर, भैरव, षोडश मातृका का मुख सदैव दक्षिण की ओर होना चाहिए। हनुमान जी का मुख नैऋत्य कोण की ओर होना चाहिए। ईशान कोण के अलावा उत्तर दिशा की ओर भी मंदिर बनाया जा सकता है।
जमीन से दो मंजिल के पश्च्यात वास्तु लागु नहीं होता बल्कि वहां सिर्फ ब्रह्माण्डीय ऊर्जा काम करती है। इसलिए बहुमंजिले अपार्टमेंट में आप स्थानानुशार अपना मंदिर कहीं भी रख सकते हैं। पर वहां पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। ज्ञान प्राप्ति के लिए पूजा-गृह में उत्तर दिशा की ओर बैठकर उत्तर दिशा की ही ओर मुख कर के पूजा करनी चाहिए। धन-प्राप्ति के लिए पूर्व दिशा की ओर बैठकर और पूर्व की ही तरफ मुख करके पूजा करनी चाहिए। शत्रु-बाधा दूर करने के लिए दक्षिण दिशा में बैठकर दक्षिण की ही ओर मुख कर के पूजा करनी चाहिए। रोग-मुक्ति के लिए पश्चिम दिशा में।

मंदिर में बल्ब लगाने से बचना चाहिए ज्योतिष में बल्ब राहू को कहा गया है। बल्कि पूजा – स्थल में दीपक जलना चाहिए दीपक से पवित्र ऊर्जा का उत्सर्जन् होता है। बल्ब जलाकर राहू को आमंत्रित करने से यथा संभव बचना चाहिए। आजकल सुगन्धित अगरबत्तियों का खूब चलन है। पर अगरबत्ती बनाने में बांस का प्रयोग होता है। पूजा-गृह में बांस जलना शुभ नहीं होता अतः धुप बत्ती जलाना शुभता बढ़ाने वाली बात होगी।

X