राहू और केतू*
राहू केतू छाया गृह माने जाते हैं हिन्दू
ज्योतिष में इन्हे दैत्य माना जाता हैं
जो सूर्य व चन्द्र को भी ग्रहण लग देते हैं
यह दोनों हमेंशा वक्रावस्था मेंं रहते हुये
एक दूसरे के विपरीत भावों मेंं रहते हैं राहू को केतू से ज़्यादा
भयानक माना गया हैं पुरानो के अनुसार कश्यप ऋषि की
13 पत्नियों में से एक सिंहिका का पुत्र राहू था जिसके
अमृतपान कर लेने से भगवान विष्णु ने अपने चक्रो से दो
हिस्से कर दिये थे राहू ऊपर का हिस्सा तथा केतू नीचे का
हिस्से कहलाता हैं।
यह दोनों 12 राशियों का भ्रमण 18वर्षों में करते हैं तथा
एक राशि में 18माह रहते हैं राहू को विध्वंशक तथा केतू को
मोक्षकर्ता माना गया हैं राहू जिस भाव में स्थित होता हैं
उस भाव से संबन्धित कारकत्वों को ग्रहण लगा देता हैं
अर्थात कमी कर देता हैं जबकि केतु उस भाव विशेष से
विरक्ति प्रदान करता हैं राहू को स्त्रीलिंग तथा केतू को
नपुंशक माना गया हैं। राहू केतू के मित्र बुध, शुक्र व शनि हैं
तथा मंगल इनसे समता रखता हैं। यह दोनों छायाग्रह होने के
कारण जिस राशि में होते हैं उसके स्वामी के जैसे ही फल
प्रदान करते हैं। केंद्र, त्रिकोण मेंं होने से यह कई शुभ योग
प्रदान करते हैं। विशोन्तरी दशा मेंं राहू को 18तथा केतू को
7 वर्ष दिये गए हैं।
चन्द्र से केंद्र मेंं राहू यदि 1 से 8भावों में हों तो जातक लंबा
होता हैं और यदि केतू चन्द्र से केंद्र में होकर 1 से 8 भावों में
होतो जातक कद में छोटा होता हैं राहू 1, 2, 3, 8, 9
राशियों के अतिरिक्त सभी राशियों मेंं शुभफल प्रदान
करता हैं कन्या राशियों में इसे अंधा माना जाता हैं जिस
कारण इस राशि में यह कोई फल नहीं देता हैं। लग्न मेंं राहू
बहुत शुभ होने पर जातक लंबा व पतला, बहुत घूमने वाला तथा
तकनीकी ज्ञान वाला होता हैं परंतु किसी ना किसी
रोग से पीडित जरूर रहता हैं यदि राहू चन्द्र संग होतो
जातक स्वार्थी व लालची प्रवृति का तथा मानसिक
विकार वाला होता हैं ऐसे में यदि चन्द्र केंद्र का स्वामी
होतो जातक माता व परिवार का वफादार नहीं होता हैं
राहू उसे हावभाव पूर्ण वाणी, बहुत तरक्की तथा दो
पत्नीयों का सूख प्रदान कर्ता है। केतू लग्न मेंं जातक को
छोटा कद, विकलांगता तथा अन्य अशुभ प्रभाव देता है।
दूसरे भाव में राहू जातक को धन व पैतृक संपत्ति देता हैं परंतु
जातक का धन बचता नहीं हैं अर्थात जातक को बरकत नहीं
होती ऐसा जातक किसी के मामले में हस्तक्षेप नहीं करता,
वाणी संबंधी विकार से ग्रस्त हो सकता हैं परिवार से भी
ऐसे जातक की कम निभती हैं बहुधा विवाह बाद परिवार से
अलग रहते हैं। केतू यहाँ पर जातक की पुस्तैनी संपत्ति को
कर्जे द्वारा नष्ट कर देता हैं जातक को बड़ा परिवार परंतु
आमदनी कम देता हैं। तीसरे भाव में सम राशि का राहू शुभ
माना जाता हैं यहाँ राहू जातक को परिवार में सबसे
छोटा बनाता हैं जो सहोदरो हेतु अशुभ होता है। केतू यहाँ
कर्ण रोग तथा कमजोर दिमाग देता हैं बहुधा जातक के
परिवार में 3 सदस्य होते हैं। चतुर्थ भाव में राहू भूमि अथवा
मकान के सुख में कमी करता हैं जातक मानसिक रूप से व्याकुल
व परेशान रहता हैं उसकी माँ का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं
रहता उसके मकान में वस्तु अथवा प्रेत दोष अवश्य होता है।
केतू यहाँ जातक को घर से उचाट रखता हैं अर्थात जातक घर
से बाहर रहना ज़्यादा पसंद करता हैं तथा उसके अपनी माँ से
संबंध अच्छे नहीं होते। पंचम भाव में राहू शिक्षा पूर्ण नहीं
होने देता परंतु बुद्दिमान बनाता हैं उसे कला, फोटोग्राफी
व लेखन का शौक देता है जातक को विवाह सुख में किसी
ना किसी रूप में परेशानी जरूर देता हैं पत्नी यदि सुंदर होती
हैं तो जातक उस पर शक करता हैं उसे गर्भविकार रहते हैं
जिससे संतान संबंधी कष्ट जातक के जीवन में रहते हैं अथवा
पहली संतान में परेशानी होती हैं बहुधा जातक की पुत्र
संतान नहीं होती। केतू यहाँ संतान हेतु अशुभता देता हैं तथा
शिक्षा में रुकावट जरूर देता है। संक्षेप मेंं कहे तो इस भाव मेंं
राहू केतू शिक्षा व संतान हेतु अशुभ रहते हैं संतान पर रूखा
व्यवहार रखवाते हैं परंतु संतान से बेहद लगाव भी करवाते हैं।
छठे भाव में राहू जातक को ताकतवर बना उसे अच्छी
नौकरी प्रदान करता हैं उसे मामा से लाभ प्राप्त कराता हैं
पाप प्रभाव में होने से जातक की कलाई पर निशान, नेत्र
रोग तथा उसके मामा को पुत्र नहीं देता केतू यहाँ जातक
को शत्रुता से बचाता हैं अर्थात जातक के शत्रु नहीं होते।
सातवे भाव में राहू जातक को विवाह सूख में किसी न
किसी प्रकार से कमी प्रदान करता हैं मंगल संग होने पर राहू
यहाँ जातक की पत्नी को मासिक धर्म संबंधी बीमारी
देता हैं जिससे जातक के अन्य स्त्रीयों से संपर्क बन जाते हैं
मंगल,चन्द्र संग राहू यहाँ नेत्रा व गुप्त रोग देता हैं शुक्र से केंद्र
में राहू यहाँ पत्नी भक्त बनाता हैं जो दूसरों को हमेंशा
भला बुरा कहता रहता हैं। केतू यहाँ जातक को पत्नी से समय
समय पर दूर करता रहता हैं अर्थात जातक व उसकी पत्नी
किसी भी कारण से अलग अलग रहते हैं बहुधा जातक की
पत्नी वाचाल प्रवृति की होती हैं जिस कारण जातक उसे
बात-बात पर टोकता अथवा जलील करता रहता हैं। अष्टम
भाव में राहू जातक को लंबी बीमारी द्वारा मृत्यु देता हैं।
2, 4, 5, 6, 8, 10, 12 राशियों का राहू होने पर जातक की
पत्नी सुंदर व मृत्यु सुखद अर्थात बेहोशी या सोते हुये होती
हैं जातक को अपने जीवन काल में उदर रोग रहता हैं। केतू यहाँ
दंतरोग, चर्मरोग इत्यादि देता हैं तथा जातक को आत्महत्या
हेतु भी उकसाता रहता हैं।
नवम भाव में राहू सरकार द्वारा लाभ प्रदान करता हैं परंतु
संतान देर से देता हैं राहू यदि समराशि में को कष्ट तथा
जवानी में जुआ खेलने की आदत देता हैं उसकी इस आदत की
वजह से अच्छे लोग उससे दूर रहते हैं तथा वह ग़लत दोस्तों के
कारण अपयश पाता हैं। दशम भाव मेंं 2, 4, 5, 6, 8, 10, 12
राशियों का राहू जातक को शुभता, अधिकार व
प्रसिद्दि देता हैं ऐसा जातक छोटा काम नही करते प्राय
30 वर्ष बाद इनके जीवन में बदलाव आता हैं यह राजनीति
करने में बड़े गुणी होते हैं केतू यहाँ जातक से निम्न कार्य
कराता हैं स्वयं का व्यापार करने नहीं देता जातक का
चरित्र शंकालु होता हैं तथा पिता को शुभता नहीं देता।
एकादश भाव में राहू धन व पद दोनों देता हैं परंतु पुत्र केवल
एक ही देता हैं ऐसा जातक कर्ण रोग से पीडि़त होता हैं
तथा शीघ्र धनवान बनने की चाह में जातक सट्टा, लॉटरी
इत्यादि में धन लगता हैं केतू यहाँ गजेट्स का शौकीन बनाता
हैं तथा जातक अपने बड़ों से दूर रहना पसंद करता हैं। द्वादश
भाव में राहू नेत्र रोग, एक से अधिक विवाह, नींद में
परेशानी तथा डींगे मारने वाला व्यक्तित्व देता हैं ऐसा
जातक करता कुछ नहीं हैं परंतु बातें बड़ी बड़ी करता हैं चन्द्र
संग होने पर जातक का रुझान आध्यात्मिकता की और बढ़ा
देता हैं केतू यहाँ जातक को मस्तमौला व्यक्तित्व देता हैं
ऐसा जातक किसी की भी परवाह नहीं करता।