दश विध
मन्त्रो के दस संस्कार ये है :-
जनन, दीपन, बोधन, ताड़न, अभिषेचन, विमलीकरण, जीवन, तर्पण, गोपन, और आप्यायन।
इनकी विधि इस प्रकार है :–
जनन :-
भोजपत्र गोरोचन कुंकुम चंदनादि से आत्माभिमुख त्रिकोण लिखे, फिर तीनो कोणों में छः छः समान रेखाएं खीचे। ऐसा करने पर 49 त्रिकोण कोष्ठ बनेंगे। उसमे ईशानकोण से मातृका वर्ण लिख कर देवता का आवाहन-पूजन करके मन्त्र का एक एक वर्ण उच्चारण करके अलग पत्र पर लिखे। ऐसा करने पर “जनन” नाम का प्रथम संस्कार होगा।
दीपन:-
हँसमन्त्र का सम्पुट करने से एक हजार जप द्वारा मन्त्र का दूसरा “दीपन” संस्कार होता है। जैसे – हंसः रामाय नमः सोऽहं।
बोधन :-
हूँ बीज सम्पुटित मन्त्र का पाँच हजार जप करने से “बोधन” नामक तीसरा संस्कार होता है। जैसे- हूँ रामाय नमः हूँ ।
ताड़न :-
फट् सम्पुटित मन्त्र का एक हजार जप करने से “ताड़न” नामक चतुर्थ संस्कार होता है। जैसे – फट् रामाय नमः फट् ।
अभिषेचन :-
भोजपत्र पर मन्त्र लिखकर ” रों हंसः ओं ” इस मन्त्र से जल को अभिमंत्रित करे और उस अभिमंत्रित जल से अश्वत्थपत्रादि द्वारा मन्त्र का अभिषेक करे। ऐसा करने पर “अभिषेक” नामक पाँचवा संस्कार होता है।
विमलीकरण :-
“ओं त्रों वषट् ” इन वर्णों से सम्पुटित मन्त्र का एक हजार जप करने से “विमलीकरण” नामक छठा संस्कार होता है। जैसे- ओं त्रों वषट् रामाय नमः वषट् त्रों ओं ।
जीवन :-
स्वधा वषट् सम्पुटित मूलमन्त्र का एक हजार जप करने से “जीवन” नामक सातवाँ संस्कार होता है। जैसे – स्वधा वषट् रामाय नमः वषट् स्वधा।
तर्पण :-
दुग्ध, जल, एवं घृत के द्वारा मूलमन्त्र से सौ बार तर्पण करना ही “तर्पण” संस्कार है।
गोपन :-
ह्रीं बीज से सम्पुटित एक हजार मूलमन्त्र का जप करने से “गोपन” नामक नवम् संस्कार होता है। जैसे – ह्रीं रामाय नमः ह्रीं ।
आप्यायन :-
ह्रौं बीज सम्पुटित मूलमन्त्र का एक हजार जप करने से “आप्यायन” नामक दसवाँ संस्कार होता है। जैसे – ह्रौं रामाय नमः ह्रौं ।
इस प्रकार संस्कृत किया हुआ मन्त्र शीघ्र सिद्धिप्रद होता है।
जय माता की !!
किन्तु दशो महाविद्या स्वम् सिद्ध है अतः उनके कुलानुसारेन पूजन में किसी भी संस्कार की आवश्यक्ता नहीं..म. महोदधि.