सम्पूर्ण विश्व पांच मूल तत्वों से बना है, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।  हमारा शरीर भी प्रकृति के इन पांच मूल तत्वों से बना है। ये पंचमहाभूत हमारी पंचेंद्रियों-घ्रणा, स्वाद, श्रवण,स्पर्श और दृष्टि से सम्बंधित है। हमारे शरीर के सात उर्जा चक्र इन पंच महाभूतों से जुड़े है और इनमे किसी भी प्रकार का असंतुलन होने से हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
बृहत् पराशर होरा शास्त्र क अनुसार पंचतत्व अग्नि,पृथ्वी,आकाश ,जल और वायु क्रमश: मंगल, बुध,बृहस्पति, शुक्र और शनि द्वारा नियंत्रित होते है।

अग्नि भुमिनभस्तो यावायवः क्रमतो द्विज ।
भौमदीना’ ग्रहाणां च तत्वानीति यथाक्रमम ।।

जिस ज्योतिषी को इन पांच तत्वों की गहरी जानकारी होती है वो जातक को केवल देखकर ही जान जाता है कि जातक किस ग्रह के दशा काल से गुजर रहा है। जैसे बुध ग्रह दशा  काल में

पृथ्वी तत्व
की प्रधानता होने से शरीर का वजन और शक्ति बढ़ जाती है अतः शरीर मजबूत बनता है, जातक को धन और तरक्की मिलती है और उसका झुकाव धर्मं की ओर हो जाता है। गंध पृथ्वी का विशेष गुण है और गंध या हमारी घ्रणेन्द्रिय का संबंध हमारी नाक से है जिसका घोतक बुध है। जब किसी की जन्मकुण्डली में बुध बलवान होता है तो वह व्यक्ति सुगंध प्रेमी होता है।
उक्त छंद में सूर्य और चन्द्र के तत्वों का उल्लेख नहीं किया गया है। अन्य शास्त्रों में उनके तत्वों का उल्लेख क्रमशः अग्नि और जल के रूप में किया गया है।

अग्नि तत्त्व
का गुण तेज है। इसका संबंध हमारी दृष्टी से है जब किसी की जन्मकुण्डली में सूर्य और मंगल बलवान होते हैं तो जातक का भाल तेज     ( प्रभा ) से चमक उठता है।

आकाश ( ईथर )
तत्व का गुण शब्द या वाक्  होता है। इसका संबंध हमारी सुनने की शक्ति से ह शब्द  ( वाक ) का नियंत्रक ब्रहस्पति है। जिस जातक का गुरु बलवान होता है वह सौम्य और गम्भीर होता है क्यों की गम्भीरता और सौम्यता ही आकाश का अनिवार्य गुण है। एसा जातक हर शब्द को बोलने से पहले तौलता है। इसके अलावां आकाश तत्व सौभाग्यवर्द्धक होता है

जल
का गुण रस है और यह चन्द्र तथा शुक्र द्वारा नियंत्रित होता है इसका संबंध हमारी स्वाद इन्द्रिय से है और जल तत्व से सम्बंधित हमारी ज्ञानेन्द्रिय हमारी जिह्वा है। जल तत्त्व की प्रधानता होने से जातक के सुनिश्चित रूप से जीवन भर मातृत्व सुरक्षा प्राप्त रहती है यह तत्व हर काम और प्रयास में जातक की सफलता को सुनिश्चित करता है।

वायु तत्त्व
का गुण स्पर्श है। शनि इस तत्त्व का नियंत्रक है। इसका संबंध हमारी स्पर्शेन्द्रिय से यानि हमारी त्वचा से है। वायु तत्त्व की प्रधानता होने से जातक का शरीर फुर्तीला होता है। वायु तत्त्व व्यक्ति को उसके कार्यक्षेत्र में तरक्की दिलाता है तथा व्यापार में उसको लाभ होता है जिस जातक में इस तत्त्व की प्रधानता होती है वह सत्यवादी और स्पस्टवादी होता है।
हमारा शरीर पंचतत्त्व का बना है, ये सभी तत्त्व हमारे शरीर में बिभिन्न अनुपातों में विद्यमान है। यदि शरीर में इनमे से किसी भी तत्त्व का असंतुलन होता है तो व्यक्ति में व्यवहार-संबंधी अलग तरह के गुण और विशेषताये आ जाती है। ज्योतिष शास्त्र की सहायता से हम किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में सारी बाते जान सकते है। जिससे उनका यथोचित उपचार सुनिश्चित कर पाना संभव हो पाता है

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