व्यय से तात्पर्य खर्च, त्याग, पृथकता
( दूर होना ) , हानि सभी है। जो ग्रह द्वादश भाव में आ जाता है वह जिस वस्तु आदि से सम्बन्ध रखता है उस वस्तु का वह बहुत व्यय करता है। इसी प्रकार द्वादश भाव का स्वामी जिस भाव में आकर स्थित हो, जातक का उस भाव से अर्थात उस भाव सम्बन्धी बातों से पृथक
( अलग ) कर देता है। व्यय तो सदा प्रयोग से ही होता है। अतः जो ग्रह द्वादश स्थान में स्थित हो वह निज सम्बंधित बातों का प्रयोग खर्च, व्यय, दान, त्याग आदि को प्रदर्शित करता है।
//*// सूर्य जब द्वादश भाव में स्थित होता है तो निज ( खुद ) का व्यय होता है। अर्थात जातक अपने सुखों का त्याग दूसरों के लिए करता है वह अपनी हानि कर के भी दूसरों का खूब आतिथ्य करता है।
सूर्य क्योंकि आँख है और व्यय स्थान खर्च , इसलिए ऐसा जातक आँख का प्रयोग आवश्यकता से अधिक कर के अपनी आखों को बिगाड़ लेने की स्थिति में होता है। विशेषतया जबकि सूर्य पर शनि , राहु आदि अन्य त्यागात्मक तथा रोगात्मक ग्रहों का भी प्रभाव हो।
//* // चन्द्र एक भावनामय मानसिक ग्रह है। इस ग्रह की द्वादश स्थान में स्थिति जातक को भावुक बना देती है। वह बिना कारण के भय , आशंका, श्रद्धा आदि भावनाओं की अपनें अन्दर सृष्टि कर लेता है।
//*// मंगल एक शक्ति का कारक ग्रह है। अतः जिन भी जातक का मंगल द्वादश स्थान में होता है वे अपनी शक्ति का अनावश्यक एवं दुष्प्रयोग करते है तथा अपने शरीर के पट्ठो
( muscles ) से आवश्यकता से अधिक काम लेते है।
जिन जातक का // * // बुध व्यय भाव में होता है वे आवश्यकता से अधिक बातें करते हैं। उनका वाणी पर नियंत्रण कम हो जाता है।
जिन भी जातक का // * // गुरु द्वादश स्थान में हो वे दूसरों को ज्ञान की बातें बतानें में अपना समय नष्ट करते हैं। वह प्रायः शिक्षा और उपदेश उन व्यक्तियों को देते हैं जिनके लिए उस उपदेश का कोई अर्थ या फल नहीं होता।
जिन जातक का //*// शुक्र द्वादश स्थान में हो और शनि , राहु से पीड़ित हो वह अपना वीर्य बहोत व्यय करते है, बल्कि अपव्यय करते है। पढ़ते बहुत हैं। स्त्री से उनका मनमुटाव रहता है। हालाँकि उनकी स्त्री प्रायः दीर्घजीवी ( लम्बी उम्र ) होती है क्योंकि स्त्री का कारक शुक्र द्वादश स्थान में विशेष हर्ष और बल पता है।
जिन जातक का // * //शनि द्वादश स्थान में होता है और राहु से प्रभावित हो तो वह अपनी स्नायु का अधिक प्रयोग करते है। और रूखे तथा चिडचिडे हो जाते है। उनको स्नायु के किसी रोग की सम्भावना रहती है।
//*//राहु और केतु का फल प्रायः क्रमशः शनि तथा मंगल की भांति समझना चाहिए। इसी प्रकार प्रत्येक द्वादशेश जहाँ जाकर स्थित होगा । जातक को उस भाव से सम्बंधित वस्तु या रिश्ते से अलग कर देगा और यदि द्वादशेश सूर्य , शनि जैसे पृथकता- जनक ग्रहों में से कोई हो तो फिर तो उस भाव से शीघ्र ही अलगाव हो जायेगा और यदि द्वादश स्थान में राहु हो तो अलगाव और भी जल्दी होगा।