युधिष्ठिर ने पूछा: भगवन् आषाढ़ के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? उसका नाम और विधि क्या है? यह बतलाने की कृपा करें।

भगवान् श्री कृष्ण बोले : राजन: – आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम “शयनी” है।

मैं उसका वर्णन करता हूँ।
वह महान पुण्यमयी स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली और उत्तम व्रत है।

आषाढ़ शुक्लपक्ष में “शयनी” एकादशी के दिन जिन्होंने कमलपुष्प से कमललोचन भगवान् विष्णु का पूजन तथा एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनो लोकों और तीनो सनातन देवताओं का पूजन कर लिया।

हरिशयनी एकादशी के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर तबतक शयन करता है, जबतक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती।

अतः आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनुष्य को भलीभांति धर्म का आचरण करना चाहिये।

जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परमगति को प्राप्त होता है। इसलिये यत्नपूर्वक इस एकादशी का व्रत करना चाहिये।

एकादशी की रात्रि में जागरण करके शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान् विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिये।

ऐसा करनेवाले पुरुष के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं।

राजन:- जो इसप्रकार एकादशी के उत्तमव्रत का पालन करता है, वह जाति का चांडाल होने पर भी संसार में सदा मेरा प्रिय रहनेवाला है।

राजन:- एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।
अतः इसका व्रत अवश्य करना चाहिये कभी भूलना नहीं चाहिये।

चातुर्मास में भगवान् विष्णु गुरुत्व में गुरु जहाँ विश्रांति पाते हैं ऐसे आत्मदेव भगवान् विष्णु 4 महीने समाधिस्थ रहते हैं। इनदिनो सभीतरह के शुभ कार्य यथा विवाह,मुण्डन, उपनयन आदि वर्जित होते हैं।

यह चार महीने धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं।

चातुर्मास में भगवान् विष्णु के आगे पुरुषसूक्त का पाठ करनेवाले की वुद्धि का विकाश होता है। दान, दया और इन्द्रिय संयम से उत्तम धर्म करनेवाले को उत्तम लोकों की प्राप्त होती है।

निषिद्धकार्य:- इन चार महीनो में परायाधन हड़पना,परस्त्रीगमन करना,निंदा कुचिस्टा करना, ब्रह्मचर्य को तोडना तो मानो हाथ में आया हुआ अमृतकलश को छोर देना है। ब्रह्मचर्य का पालन करने, परधन और परस्त्री पर कदापि कुदृष्टि न रखे।

“परनिंदा महापापं परनिंदा महाभयं।
परनिंदा महादु:खम् तस्य पातकं न परं” ((स्कन्दपुराण))।
परनिंदा महापाप है, परनिंदा महादुख है और इससे बड़ा कोई पाप नहीं है।

इस चातुर्मास में पक्का व्रत ले की हम किसी की निंदा नहीं करेंगे। असत्य भाषण का त्याग करेंगे। क्रोध का त्याग करेंगे।

चातुर्मास में यदि स्त्री पुरुष ब्रह्मचर्य का पालन करें तो हे विष्णुप्रिया लक्ष्मी वो जीव अपने दोषों से पार होकर विष्णुभक्ति और मुक्ति को पाता है।
अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है।

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