हिन्दू धर्म में तिलक का अत्यधिक महत्व है। तिलक अनेक प्रकार के होते हैं यथा: गोल तिलक, लंबा तिलक, आडी तिन रेखाओं वाला तिलक आदि। भगवान शिव के उपासक त्रिपुण्ड तिलक, शक्ति के उपासक गोल बिंदी एव भगवान राम के उपासक तीन खड़ी रेखाओं के रूप में तिलक लगाते हैं तिलक के बिना सभी जातियों के तप, स्नान, पितृकर्म, देवपूजा, दानकर्म अथवा अन्य सभी संस्कार निष्फल हो जाते हैं। शास्त्रों में तिलक की अनिवार्यता बताई गई है। इस सम्बन्ध में कहा भी गया है :
स्नान-दान-तपो होमो, देवानांपितृकर्म च।
तत्सर्वं निष्फलं यति, ललाटे तिलकं बिना।।
– ब्रह्मवैवर्त पुराण
तिलक, टिका अथवा त्रिपुण्ड का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क से होता है। मस्तिष्क व्यक्ति के पुरे शरीर का संचालक होता है। मस्तिष्क ऊपरी भाग प्रमस्तिष्क कहलाता है। यह भाग शरीर में आने वाली तरंगों एवं संवेदनाओं को ग्रहण करता है और शरीर के अन्य भागों में पहुँचाने का कार्य करता है। ललाट पर हमारी दोनों भौहों के मध्य एक आज्ञा चक्र होता है । इस चक्र पर ध्यान हटने से व्यक्ति का मन पूर्ण रूप से एकाग्रचित्त नहीं हो पाता । इससे मनुष्य का मन पूर्ण शक्ति संपन्न नहीं हो पाता। आज्ञाचक्र तीसरे नेत्र के सामान होता है। यहाँ तिलक लगाने से आज्ञाचक्र जागृत हो जाता है और व्यक्ति उर्ध्वगामी हो जाता है। उसका ओज एवं तेज बढ़ जाता है। तिलक लगाने से मनुष्य के मस्तिष्क में एक प्ररकार की शीतलता, शांति एवं शालीनता की अनुभूति होती है।