भोजन के बाद आवास मनुष्य की दूसरी सबसे बड़ी आवश्यकता है।हर व्यक्ति चाहता है कि उसका अपना खुद का एक घर हो, जहाँ दिन भर की भाग-दौड़ के पश्च्यात आकर वह सुकून की साँस ले सके।आज की महंगाई के दौर में ज्यादातर लोगों को किराये के घर में रहना पड़ता है । जिसमे प्रतिमाह किराया देने के साथ-साथ एक-दो साल में घर बदलने की भी समस्या रहती है। एक घर को बदल कर दूसरे घर में अपनी गृहस्थी बसाना, मानसिक रूप से बहोत पीड़ादायक होता है। ऐसे में व्यक्ति अपने ईश्वर से यही प्रार्थना करता है, कि हे प्रभु छोटा ही सही पर मेरा अपना खुद का घर हो। अपने खुद के घर से तात्पर्य सीधे-सीधे व्यक्ति के सुखों से जुड़ा होता है। जो सुख उसे अपने खुद के घर में प्राप्त होता है वह सुख उसे किराये के घर में नहीं प्राप्त हो सकता है।अपने घर में उसे अपनी मर्जी से रहने की सुविधा होती है। घर में कोई बदलाव वह अपनी मर्जी से कर सकता है। समस्त प्रकार के भौतिक सुखों का आधार अपना घर ही होता है।

अपना मकान बनाने की व्यक्ति की अभिलाषा कभी तो सरलता से पूर्ण हो जाती है, तो कही किसी को हर प्रकार से लाख जतन कर के भी अपना घर होने का सुख प्राप्त नहीं हो पता। यही व्यक्ति का अपना भाग्य होता है।आइये देखते हैं ज्योतिष शास्त्र में अपना घर होने के कुछ महत्वपूर्ण ज्योतिषीय योग।

ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार भूमि का कारक ग्रह मंगल है। जन्म कुंडली में चौथा भाव भूमि, जायदाद और मकान से संबंध रखता है। एक अच्छा घर प्राप्त करने के लिए चौथे भाव का भावेश और चौथे भाव में शुभ ग्रहों का होना अनिवार्य है।इसका विवरण इस प्रकार है

* अगर चतुर्थ भाव का स्वामी किसी भी केंद्र या त्रिकोण स्थान में स्थित है तो जातक को घर का स्वामी बनाता है।

* यदि चौथे भाव का स्वामी ग्रह अपनी उच्च, मूल त्रिकोण राशि या स्वगृही, उच्चाभिलाशि, मित्रक्षेत्री, शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को जमीं, जायदाद, मकान आदि का सुख मिलता है।

* अगर जन्म कुंडली में मंगल बलवान हो, अपनी उच्च राशि का होकर लग्न, पंचम या नवम भाव में हो और चतुर्थ भाव में कोई भी पापी ग्रह बैठा हो तो जातक के पास विपुल भू-सम्पदा होती है।

* अगर भूमि और जायदाद के योग में दशमेश, नवमेश और लाभेश ग्रहो का संयोग हो तो व्यक्ति उच्च स्तर का भूस्वामी तथा जमीन-जायदाद के धंधे से लाभ उठाने वाला होता है।

_अपने पराक्रम से बनाया गया घर _

* यदि भाव का स्वामी अकेले या किसी शुभ ग्रह के साथ 1,4,7,10 वें भाव में हो तो जातक माता-पिता द्वारा अर्जित जायदाद में भवन -निर्माण करता है।

* यदि चौथे भाव का स्वामी 1,5,9 वें भाव में हो तो जातक सरकार से प्राप्त या अपने पुण्य-प्रताप और भाग्य से प्राप्त भुमि पर भवन निर्माण करवाता है।

* अगर चौथे भाव का स्वामी 3,6,8,12 वें भाव में हो तो जातक अपनी संपदा को छोड़कर लंबी आयु के बाद अपने ही बलबूते पर मकान बनाता है।

* अगर चौथे भाव का स्वामी लग्न में हो और लग्नेष चौथे भाव में हो तो जातक अपने ही धन संचय से मकान बनवाता है।

_कुछ अन्य योग_

* चौथे भाव का स्वामी एवं दशवें भाव का स्वामी चंद्रमा और शनि से युक्त हों तो व्यक्ति के पास आधुनिक डिजाइन और साज-सज्जा से युक्त घर होता है।

* अगर चौथे भाव में स्वगृही चंद्र, शुक्र और कोई भी अन्य उच्च राशि का ग्रह अवस्थित हो और चौथे भाव का स्वामी त्रिकोण अथवा केंद्र भाव में हो तो व्यक्ति के पास फार्म हाउस अथवा बाग-बगीचे से युक्त घर होता है।

* जन्मकुण्डली के चौथे भाव में चर राशि (1, 4, 7, 10) हों या चौथे भाव का स्वामी चर राशि में बैठा हो, उसपर शुभ ग्रह बृहस्पति की युति या दृष्टि हो तो व्यक्ति के खुद की या सरकार द्वारा प्राप्त खूब भू-संपत्ति होती है।

* यदि लग्न में चौथे और सातवें भाव के स्वामी बैठे हों तथा चौथे भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि भी हो तो व्यक्ति को अचानक बना-बनाया मकान अथवा जायदाद मिलती है…

X