अखंड रामायण कहने के अवश्यक नियम* *–*
श्री राम और रामायण दोनों पर मेरी बहुत ही श्रद्धा है अखण्ड रामायण करने कराने का अमोघ फल होता है इसमें दो राय नहीं है बशर्ते पाठ ठीक से किया जाये पाठ खंडित न होने पाये ।
कहते हैं कि अखण्ड रामायण पाठ गोस्वामीजी के समय में ही होने लगा था । जो कि अब भी कहीं न कहीं होता ही रहता है । यह पाठ कुछ लोग पुण्य लाभ के लिए तो कुछ कुशल-मंगल अथवा अन्य किसी कामना की सिद्धि के लिए करते हैं ।
अखण्ड रामायण पाठ के अलावा कई भक्त प्रतिदिन नियम से पाठ करते हैं । चाहे रोज कुछ ही दोहें पढ़ें । कुछ लोग मासपारायण तो कुछ लोग नवाहपारायण पाठ भी करते हैं यह भी बहुत फलदायी है ।
समय बदलने के साथ अखण्ड रामायण के करने-कराने के मूल स्वरूप में बहुत परिवर्तन आ गया है जो कि बहुत गलत है और इसका ठीक फल भी नहीं मिलता ।
अखण्ड रामायण पाठ कराने के लिए किसी योग्य कर्मकांडी ब्राह्मण को लाना चाहिए जो आवश्यक पूजा सम्पन्न करा सके और अपने उद्देश्य अथवा कामना के अनुरूप उचित सम्पुट का चयन करके अखण्ड रामायण का पाठ आरंभ कराना चाहिए यह सामान्यतः चौबीस घंटे में पूरा हो जाता है इसके बाद हवन, आरती, भजन और भोजन होना ही चाहिए ।
अखण्ड रामायण के दौरान सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि जब तक पाठ पूरा न हो जाय तब तक अनवरत पाठ चलना चाहिए बीच में कोई रुकावट नहीं होना चाहिए जहाँ पाठ चल रहा हो वहाँ अन्य कोई अनर्गल बात किसी को नहीं करना चाहिए और न ही पाठ करने वालों को पाठ के अलावा इधर-उधर कुछ बीच में बोलना चाहिए ।
आजकल देश-समाज में बहुत रंगरूट हो गए हैं पाठ स्थल को रंगरूटों से बचाना चाहिए इन्हें पाठ कहने की अनुमति नहीं देनी चाहिए पाठ कहने, करने और कराने के वही अधिकारी हैं जिन्हें श्रीरामचरितमानस, भगवान श्रीराम और गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज में श्रद्धा और विश्वास हो ।
अक्सर देखने में आता हैं कि लोग अखण्ड पाठ का आयोजन करा लेते हैं जबकि रामायण कहने वाले योग्य लोगों की व्यवस्था ही नहीं करते जो कि बहुत महत्वपूर्ण है ऐसे रंगरूट जो कभी श्रीरामचरितमानस नहीं पढ़ते, पाठ कहने के लिए आ जाते हैं कई तो मुँह में पान या गुटका भरे रहते हैं और बोलने पर थूक गिरता रहता है । ऐसे लोग बहुत ही अशुद्ध पढ़ते हैं जबकि पाठ शुद्ध होना चाहिए ये लोग मनोरंजन के लिए आते हैं, इन्हें शुद्धता से कोई मतलब नहीं होता ।
कई लोग तो ऐसे होते हैं जिन्हें रखे गए सम्पुट का ध्यान ही नहीं रहता ये एक बार कुछ तो दूसरी बार कुछ बोल देते हैं जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए ।
*विशेष :-*
*जैसा श्रीरामचरितमानस में लिखा गया है बिल्कुल वैसा ही पढ़ना चाहिए अपने मन से कुछ जोड़ना या घटाना नहीं चाहिए यहाँ तक रामा, सियारामा आदि भी नहीं ।*
*यदि जरूरत होती तो गोस्वामीजी खुद जोड़ देते उनके जैसा भक्त-संत इस कलियुग में पैदा नहीं हुआ है और न होगा इसलिए ज्यादा दिखावा नहीं करना चाहिए।*
बिल्कुल स्पष्ट और शुद्ध पढ़ना चाहिए होता तो यह कि *लोग मनमर्जी कुछ भी जोड़ देते हैं एक जगह तो मैंने सुना कि लोग जय अम्बे गौरी आदि भी जोड़ रहे थे ।*
रंगरूट *फ़िल्मी तर्ज पर कहने के लिए भी जोड़ते-घटाते हैं, तोड़-मरोड़ कर कहते हैं* यहाँ फ़िल्मी तर्ज की कोई जरूरत नहीं है ऐसे लोगों को पहले से ही दूर कर देना चाहिए।
एक बार एक लोग कह रहे थे कि हम लोग ऐसे तर्ज पर रामायण कह रहे थे कि लोग झूम गए शहर की लड़कियाँ आई हुई थीं वे तो डांस करने लगीं बड़ा आनंद आया ।
जब हम ही अपने ग्रन्थों का मजाक बनायेंगे तो दूसरे लोग कैसे सम्मान करेंगे,
कुल मिलाकर यही कहना है कि यह ध्यान रखना चाहिए कि अखण्ड पाठ खंडित न होने पाए रंगरूट न कहने पायें पाठ बहुत ही स्पष्ट और शुद्ध होना चाहिए इसके लिए पढ़ने वाले बीच-बीच में आराम करते रहें बिना आराम किए कहने से अशुद्धता की सम्भावना बढ़ जाती है प्रेम व भक्ति भाव से सीधा-सीधा पढ़ना चाहिए ऐसा करने से अवश्य ही अभीष्ट फल प्रात होता है ।।
रामायण के कुछ विशेष सम्पुट जिसे रामायण में लगाकर पाठ करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।। –
१॰ विपत्ति-नाश के लिये =
“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।”
२॰ संकट-नाश के लिये =
“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”
३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये =
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”
४॰ विघ्न शांति के लिये =
“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”
५॰ खेद नाश के लिये =
“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥”
६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये =
“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”
७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये =
“दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥”
८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये =
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”
९॰ विष नाश के लिये =
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”
१०॰ अकाल मृत्यु निवारण के लिये =
“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”
११॰ सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये =
“प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”
१२॰ नजर झाड़ने के लिये =
“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”
१३॰ खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिये =
“गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।”
१४॰ जीविका प्राप्ति के लिये =
“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”
१५॰ दरिद्रता मिटाने के लिये =
“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।”
१६॰ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये =
“जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”
१७॰ पुत्र प्राप्ति के लिये =
“प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’
१८॰ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये =
“जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।”
१९॰ ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये =
“साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”
२०॰ सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये =
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
२१॰ मनोरथ-सिद्धि के लिये =
“भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”
२२॰ कुशल-क्षेम के लिये =
“भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”
२३॰ मुकदमा जीतने के लिये =
“पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”
२४॰ शत्रु के सामने जाने के लिये =
“कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”
२५॰ शत्रु को मित्र बनाने के लिये =
“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”
२६॰ शत्रुतानाश के लिये =
“बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”
२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये =
“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”
२८॰ विवाह के लिये =
“तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”
२९॰ यात्रा सफ़ल होने के लिये =
“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”
३०॰ परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये =
“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”
३१॰ आकर्षण के लिये =
“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”
३२॰ स्नान से पुण्य-लाभ के लिये =
“सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”
३३॰ निन्दा की निवृत्ति के लिये =
“राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।
३४॰ विद्या प्राप्ति के लिये =
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥
३५॰ उत्सव होने के लिये =
“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”
३६॰ यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये =
“जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”
३७॰ प्रेम बढाने के लिये =
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥
३८॰ कातर की रक्षा के लिये =
“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”
३९॰ भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये =
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥
४०॰ विचार शुद्ध करने के लिये =
“ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।”
४१॰ संशय-निवृत्ति के लिये =
“राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”
४२॰ ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये =
” अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”
४३॰ विरक्ति के लिये =
“भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”
४४॰ ज्ञान-प्राप्ति के लिये =
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”
४५॰ भक्ति की प्राप्ति के लिये =
“भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”
४६॰ श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये =
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”
४७॰ मोक्ष-प्राप्ति के लिये =
“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”
४८॰ श्री सीताराम के दर्शन के लिये =
“नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”
४९॰ श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये =
“जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”
५०॰ श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये =
“केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”
५१॰ सहज स्वरुप दर्शन के लिये =
“भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”******जय सीता राम******
name khushiram prajapat
add. Arniya kedar
distik tonk
pin 304001
raj
क्या सोमवती अमावस्या को अखंड रामायण का पाठ आरंभ कर सकते हैं?
जय श्री राम
Sir jisme ramayan rakh ke akhand pda jata haiusko kyo nahi nakna chahiye
जय श्री राम किस ग्रंथ या पुस्तक में है नियम जिससे हम इस नियम को समझ सके बहुत खुशी मिली ये सुन कर जय श्री राम महाराज जरूर बताएं
।।जय श्री राम।।
रामायण पाठ करवाना है घर मे इसी महीने मे कौन से दिन को करवाए ।
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